अपनी छोटी सी मुट्ठी में एक टुकड़ा धूप पकड़ती
अपनी ललचायी आंखों से अपनी भाइयों को निहारती
उस गेंद को उनसे ऊपर उछालना चाह्ती हुई बच्ची
वो मैं ही तो थी
अपनी थकी हुई माँ के साथ चूल्हे के पास सिकती
शाम होते ही खेल छोड़ घर भागती वापस आती
अपनी दादी के साथ मंदिर सत्संग में बैठी हुई
वो मैं ही तो थी
स्कूल में सहेलियों के साथ पीछे की बेंच पर, धीमे हंसती
घर का फ़ोन नंबर मांगने वालों को शिकायत का डर देती
बूढ़े टेलर से अपनी स्कर्ट को बार बार और नीचे सिलवाती हुई
वो मैं ही तो थी
एक ही रास्ते से चुन्नी लपेटे चुपचाप कॉलेज आती जाती
बनारसी साडी में शर्माते हुए चाय समोसे की ट्रे लाती
एक अजनबी से ख़ुशी से सात जनम जुड़ती हुई
वो मैं ही तो थी
अपने बेटे में अपने अधूरे सपने छुपाने वाली
अपनी बेटी के लिए चुन चुन दहेज़ जोड़ने वाली
खुद को भूल सबकी पसंद को पूरा करती हुई
वो मैं ही तो थी
वो खिड़की, वो मंदिर, वो पीछे की बेंच
वो सीधा रास्ता, वो टेलर, वो रसोई
मैंने तो हर तरह के 'lockdown' देखे हैं
तुम्हारे लिए ये सिर्फ एक नया शब्द है
जिसने तुम्हे परेशान कर दिया है
पर मैंने जाने कितनी सदियों जिसे हर रोज़ जिया है