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Tuesday, June 30, 2020

Lockdown



अपनी छोटी सी मुट्ठी में एक टुकड़ा धूप पकड़ती 
अपनी ललचायी आंखों से अपनी भाइयों को निहारती 
उस गेंद को उनसे ऊपर उछालना चाह्ती हुई बच्ची
वो मैं ही तो थी 

अपनी थकी हुई माँ के साथ चूल्हे के पास सिकती 
शाम होते ही खेल छोड़ घर भागती वापस आती  
अपनी दादी के साथ मंदिर सत्संग में बैठी हुई 
वो मैं ही तो थी 

स्कूल में सहेलियों के साथ पीछे की बेंच पर, धीमे हंसती 
घर का फ़ोन नंबर मांगने वालों को शिकायत का डर देती 
बूढ़े टेलर से अपनी स्कर्ट को बार बार और नीचे सिलवाती हुई 
वो मैं ही तो थी 

एक ही रास्ते से चुन्नी लपेटे चुपचाप कॉलेज आती जाती
बनारसी साडी में शर्माते हुए चाय समोसे की ट्रे लाती 
एक अजनबी से ख़ुशी से सात जनम जुड़ती हुई 
वो मैं ही तो थी 

अपने बेटे में अपने अधूरे सपने छुपाने वाली 
अपनी बेटी के लिए चुन चुन दहेज़ जोड़ने वाली 
खुद को भूल सबकी पसंद को पूरा करती हुई 
वो मैं ही तो थी 

वो खिड़की, वो मंदिर, वो पीछे की बेंच 
वो सीधा रास्ता, वो टेलर, वो रसोई
मैंने तो हर तरह के 'lockdown' देखे हैं
तुम्हारे लिए ये सिर्फ एक नया शब्द है
जिसने तुम्हे परेशान कर दिया है 
पर मैंने जाने कितनी सदियों जिसे हर रोज़ जिया है 



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